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Saharanpur News: एक गांव ऐसा भी, जहां नहीं होता होलिका दहन

Saharanpur News: एक गांव ऐसा भी, जहां नहीं होता होलिका दहनतीतरों। जिले का बरसी ऐसा गांव हैं, जहां पर होलिका दहन नहीं होता। मान्यता है कि यहां होलिका दहन से भगवान शिव के पैर झुलसते हैं। इसलिए शादीशुदा महिलाएं व बेटियां आसपास के गांव में जाकर होली पूजन करती हैं।मुख्यालय से बरसी गांव की दूरी करीब 36 किलोमीटर है। यहां महाभारत कालीन शिव मंदिर है। महाशिवरात्रि पर तीन दिवसीय मेला लगता है, जिसमें दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश सहित अन्य राज्यों से लाखों श्रद्धालु प्रसाद चढ़ाने आते हैं, लेकिन यहां के बारे में मान्यता है कि होलिका दहन नहीं होता। जिसकी वजह से शादीशुदा बेटियां व महिलाएं आसपास के गांव टिकरौली, मनोहरा या फिर अन्य गांव में जाती हैं और होली पूजन करती हैं। गांव के लोग बताते हैं कि होलिका दहन से भगवान भोलेनाथ के पैर झुलस जाते हैं।

बुजुर्गों से होली को लेकर कई चर्चाएं सुनते आ रहे : प्रधान
ग्राम प्रधान आदेश कुमार का कहना है कि बुजुर्गाें से होली को लेकर कई चर्चाएं सुनते आए हैं। कहा जाता है कि सदियों पहले किसी बुजुर्ग के स्वप्न में आकर भगवान भोलेनाथ ने यह कहा था कि होलिका दहन से उनको कष्ट होता है। इसके बाद से गांव के पूर्वजों ने इसे गंभीरता से लेते हुए इस पर्व पर होलिका दहन की प्रथा को सदैव के लिए त्याग दिया है। इसी के चलते लोग गांव में होलिका दहन नहीं करते हैं।
टिकरौल गांव में जाती हैं शादीशुदा महिलाएं व बेटियां : पुजारी
शिव मंदिर बरसी के पुजारी नरेंद्र गिरि बताते हैं कि गांव की विवाहित लड़कियां व नवनिवाहिताएं पहली बार होलिका पूजन करने के लिए गांव टिकरौल में जाती हैं, जहां पर विधि पूर्वक होलिका की परिक्रमा करके धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किया जाता है।

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